पाठ पढ़ते-पढ़ते आपको भी अपने माता-पिता का लाड़-प्यार याद आ रहा होगा। अपनी इन भावनाओं को डायरी में अंकित कीजिए।


15 सितंबर, 2019

स्थान- सैन फ्रांसिस्को


आज अचानक एक छोटे बच्चे को अपने पिता के साथ स्कूल जाते देख अचानक से अपने बचपन और माता-पिता की याद आ गयी| यद्यपि वर्तमान समय में मैं विदेश में निवास करता हूँ| और मेरे माता-पिता दोनों मेरे साथ नहीं रहते| एक या दो वर्ष में एकाध बार अपने देश जाता हूँ और कुछ दिन अपने माता-पिता के साथ गुजारता हूँ| इस थोड़े से वक्त में बचपन के वे सभी अनमोल पल एवं यादें ताजा हो जाती हैं| जिन्हें मैंने अपने माता-पिता के साथ जिया है| मुझे बचपन के वे पल याद हैं जब मैं अपने पिता के साथ खेत पर जाता था| और पूरे दिन भर वहाँ खेत में उनके साथ वक्त बिताता था| कितना अच्छा वक्त था वो, न तो वक्त के गुजरने की चिंता थी न ही किसी कार्य का दवाव| वर्तमान में यह स्थिति नहीं है| अब तो हर वक्त समय का बहुत ख्याल रखना पड़ता है| कभी-कभी तो 1 घंटे में 20-25 बार घड़ी देखने की नौबत आ जाती है| जबकि बचपन में सुबह से शाम हो जाती थी और मुझे वक्त की कोई चिंता ही नहीं रहती थी| खेत में खेलते-खेलते सारा वक्त गुजर जाता था| माँ जब दोपहर में खेत पर आती थी तब भी मैं किसी न किसी खेल में व्यस्त होता था और उसकी बात न सुनता| लेकिन उसे मेरी बड़ी चिंता होती, वह घंटों तक मेरे पीछे भागकर किसी न किसी बहाने से मुझे खाना खिलाने की कोशिश करती थी| यही था बचपन जिसकी स्मृति आज भी मेरे मन में उतनी ही ताजा है जैसे कि सुबह का सूरज और जब भी मैं अपने घर की यात्रा पर जाता हूँ रास्ते के गुजरने के साथ-साथ स्मृतियाँ भी ताजा होती जाती हैं| रास्ते के बीच में पड़ने वाले पड़ावों की तरह मैं भी अपने उम्र के विभिन्न पडावों में उतरता चला जाता हूँ| उन सुखद अनुभवों में खो जाता हूँ| रास्ते चलते-चलते कुछ धूमिल स्मृतियाँ रास्ते के पड़ावों के साथ-साथ एकाएक ध्यान में प्रवेश कर जाती हैं और कभी हँस पड़ता हूँ तो कभी उस वक्त को याद करके आँखें नम हो जाती हैं|


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